Opinion- झरोखों से झांकतीं इन चीखों के लिए खुदा तुम्हें माफ नहीं करेगा

जिंदगी क्या है? बहुत से जवाब होंगे, लेकिन कश्मीर में इसकी अलग परिभाषा है। वहां जिंदगी आतंकियों की दरियादिली की मोहताज है। धर्म, अध्यात्म, दर्शन कश्मीर में औंधे मुंह लटक जाते हैं। यहां जिंदगी बंदूक की नालियों से निकलने वाली गोलियों, बम-बारूदों की

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जिंदगी क्या है? बहुत से जवाब होंगे, लेकिन कश्मीर में इसकी अलग परिभाषा है। वहां जिंदगी आतंकियों की दरियादिली की मोहताज है। धर्म, अध्यात्म, दर्शन कश्मीर में औंधे मुंह लटक जाते हैं। यहां जिंदगी बंदूक की नालियों से निकलने वाली गोलियों, बम-बारूदों की खुराक भर है, और कुछ नहीं। मजा देखिए- फिर भी कश्मीर 'धरती का स्वर्ग' है। कोई आर्किटेक्ट शशिभूषण अबरोल या डॉक्टर शाहनवाज अहमद डार के परिवार से पूछे, उनकी पत्नी और उनके बच्चों से पूछे। वो बताएंगे इस जन्नत की हकीकत।
हां, कश्मीर जन्नत है- आतंकियों के लिए, मानवता के दुश्मनों के लिए। वो जो सोचता है कि असल जिंदगी तो मरने के बाद शुरू होती है। उनसे पूछिए, वो बताएंगे कि जन्नत में कैसी-कैसी हूरें और कैसे-कैसे शराब मिलते हैं। जिसकी जिंदगी मरने के बाद शुरू होती है, वो भला दूसरों की जिंदगी का कितना एहतराम करेगा, यह हमने अभी-अभी गांदरबल में देख लिया। वहां आतंकियों ने एक-दो नहीं, सात लोंगों की जानें ले लीं। शशिभूषण और शाहनवाज उन्हीं में दो हैं जो जिंदगी के बाद जीने वाले राक्षसों के हाथों जीवन गंवा दिया।

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शशिभूषण की पत्नी रुचि ने रविवार को करवा चौथ का व्रत रखा था। जम्मू में अपने घर से थोड़ी दूर पर ही तो थे पति शशिभूषण। एपीसीओ इन्फ्राटेक नाम की कंस्ट्रक्शन कंपनी में आर्किटेक्ट थे। कंपनी श्रीनगर-लेह हाइवे पर काम चल रहा था तो वो ड्यूटी पर थे। उनकी थोड़ी देर पहले पत्नी रुचि से बात हुई थी। पत्नी ने कहा कि पूजा करने मंदिर जा रही हैं, लौटेंगी तो फिर से कॉल करेंगी। शशिभूषण का कुछ काम भी बचा था। उन्होंने भी रजामंदी जताई। पत्नी से बोले- हां, चांद देख लेना, फिर कॉल करना। वही हुआ। पत्नी मंदिर से लौटीं, चांद देखने का रस्म पूरा किया और पति का चेहरा देखने वीडियो कॉल लगाया। लेकिन शशिभूषण ने कॉल ही नहीं उठाया। रुचि कॉल पर कॉल करती रहीं। फोन कभी नहीं उठा और देर रात पता चला कि अब पति शशिभूषण उनसे कभी बात नहीं कर पाएंगे। गांदरबल में हुए आतंकी हमले में शशिभूषण के मारे जाने की भी पुष्टि हो गई।

उधर, पेशे से फिजीशियन डॉक्टर शाहनावज अहमद डार भी उसी कंपनी में कार्यरत थे। आतंकियों ने जिंदगी बचाने वाले की भी जिंदगी छीनने में थोड़ी सी हिचक नहीं दिखाई। परिजनों में हाहाकार है। सब यही पूछ रहे हैं- आखिर क्या बिगाड़ा था शाहनवाज ने, वो तो जिंदगी देने वाला था, उसकी जिंदगी क्यों ले ली? लेकिन धरती के जन्नत को जहन्नुम बनाने की सनक में दिन-रात गोलियों की बात करने वालों को भला क्या फर्क पड़ता है। फर्क पड़ा है, अब डॉक्टर शाहनवाज के बेटे को। वो अब आईएएस कैसे बनेगा? उसके सपने का क्या होगा? 'अब्बू ने कहा था कि वो मेरा सपना पूरा करवाएंगे। अब सारे सपने अब्बू के साथ ही चले गए।'
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उधर, शशिभूषण की पांच-छह साल की मासूम बेटी को पता चल चुका है कि अब वो पापा से कभी कुछ नहीं मांग पाएगी। मीडिया का माइक सामने आता है तो बेबस कह उठती है- आतंकवादी बहुत गंदे हैं। उन्होंने पापा को मार डाला। नन्हीं सी जान की ये बातें कलेजा चीर जाता है, लोग दहाड़ मारकर रोने लगते हैं। बेटा, पति, पिता, भाई होने के अलावा शशिभूषण का अपने परिजनों से एक खास रिश्ता था। वो सबकी जरूरतें पूरी करने वाले इकलौते सदस्य थे परिवार के। बच्चे हों या बूढ़े, अब शशिभूषण नहीं हैं तो सबकी एक सी स्थिति हो गई है। लेकिन जिंदगी से मिली सीख बुजुर्गों को बता रही है कि उन्हें अब अपनी नहीं, बच्चों की फिक्र करनी चाहिए। वो कहते हैं, रुचि अकेले कैसे पालेगी बच्चों को? वो फूल सी कोमल बच्ची इस बेरहम दुनिया के लिए खुद को कैसे तैयार कर पाएगी?

कोई कैसे पले, कैसे बढ़े, अब उनकी जिम्मेदारी नहीं जो दुनिया छोड़ चले। अब तो वो चले चार कंधों पर आखिरी मुकाम की ओर। अलविदा कहने वालों का जमावड़ा है। घर की खिड़कियों पर डॉक्टर शाहबाज अहमद डार के परिजन हैं। सबकी नजरें जनाजे का तब तक पीछ करती हैं, जब तक वह ओझल नहीं हो जाता। डॉक्टर साहब शांत हैं और चारों ओर चीखें। चीखें कायम रहेंगी, डॉक्टर साहब के खाक होने के बाद भी। वो लोग जो जनाजे में गए, वो सभी लौटे। हालांकि, गिनती में एक की हानि हो चुकी होगी। डॉक्टर साहब अब कंधे पर भी नहीं हैं। परिवार जनाजे से लौटे लोगों का चेहरा देखते ही फिर से दहाड़ मारता है। मासूम, बेबस चीखें फिर उठती हैं, बढ़ती हैं और रुकने का नाम ही नहीं लेतीं। उस खुदा तक पहुंच रही हैं जिसने कभी डॉक्टर साहब को एक तोहफे के तौर पर धरती पर भेजा था। क्या आज वो खुदा उन आतंकियों से नहीं पूछेगा कि आखिर तुमने मेरे तोहफे को क्यों खत्म कर दिया? जरूर पूछेगा। जरूर खुदा इन चीखों के लिए उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। इंसानियत के दुश्मनों! ये चीखें तुम्हें दोजख में भी बेचैन करेंगी।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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